hindisamay head


अ+ अ-

कविता

शुक्रिया मेरी दोस्त!

जितेंद्र श्रीवास्तव


हे अलि! आओ आज करते हैं कुछ ऐसी बातें
जिन्हें भूलने लगा हूँ शायद मैं

देखो, मैं करना चाहता हूँ
तुम्हारा शुक्रिया
और चाहता हूँ स्वीकार लो तुम इसे

तुम्हें सचमुच मालूम नहीं
जो सूख गया था भीतर ही कहीं
तुमने फिर से भर दिया है वही जीवद्रव्य
न जाने कहाँ से लाकर मुझमें

तुम्हारा शुक्रिया!
हृदय की अतल गहराइयों से शुक्रिया
मुझे यह याद दिलाने के लिए
कि प्रेम में अश्लील होता है आश्वासन
कि शक्ति से नहीं भीगती आत्मा की धरती
कि डर विलोम होता है प्रेम का

शुक्रिया मेरी दोस्त!
शुक्रिया इसलिए भी
कि तुमने जीवन का स्वप्न रहते-रहते
फिर से खोलकर बाँच दिया है वह पन्ना
जो बिला गया था मेरी ही पुतलियों में कहीं।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में जितेंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ